Natasha

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इस लिपि को नहीं पढ़ सकता

“इसे बाहर खींचो”, ऑफिसर ने आर्डर दिया। हेरो के कारण यह बेहद सावधानी से करने की आवश्‍यकता थी। सजायाफ्‍ता ने छूटने की जल्‍दबाजी में अपनी पीठ छिलवा ली थी।

इसके बाद ऑफिसर ने उसकी ओर ध्‍यान देना बन्‍द कर दिया। अन्‍वेषक के पास पहुँच उसने चमड़े के ब्रीफकेस को खोला, उसमें रखे कागजों को पलट कर देखा और जिस कागज को ढूँढ़कर उसे अन्‍वेषक को दिखाया। “लीजिए, पढ़ लीजिए”, उसने कहा। “नहीं”, अन्‍वेषक ने कहा। “मैंने तो पहले ही बतला दिया था कि मैं इस लिपि को नहीं पढ़ सकता”।

 “कम से कम इसे पास से देखिए तो”, कहते वह अन्‍वेषक के इतने निकट पहुँच गया ताकि दोनों मिलकर पढ़ सकें। लेकिन जब इससे भी सम्‍भव नहीं दिखा तो उसने लिपि पर उँगली रख बतलाना शुरू किया। 

वह कागज को सावधानी से कुछ दूरी पर रखे था जैसे उसे छूने से ही वह खराब हो जाएगा, लेकिन वह यह भी चाहता था कि अन्‍वेषक उसे पढ़ जरूर ले। अन्‍वेषक ने ऑफिसर को प्रसन्‍न करने के विचार से पढ़ने की कोशिश तो की, लेकिन पल्‍ले कुछ पड़ नहीं रहा था। यह देख ऑफिसर ने प्रत्‍येक शब्‍द के अक्षरों को बोलकर समझाने की कोशिश की। 

“यहाँ ‘बी जस्‍ट\\' लिखा है”, ऑफिसर ने एक बार फिर कोशिश की, “अब तो आप पढ़ ही सकते हैं।” अन्‍वेषक कागज के इतने निकट चला गया कि ऑफिसर को यह आशँका होने लगी कि कहीं वह कागज को छू न दे, इसलिए उसने कागज और दूर कर लिया!

 अन्‍वेषक ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की, लेकिन यह स्‍पष्‍ट था कि वह अभी भी सफल नहीं हो पा रहा था। “यहाँ बी जस्‍ट लिखा है”, ऑफिसर ने एक बार फिर दोहराया। “हो सकता है”, अन्‍वेषक ने कहा, “मैं तुम्‍हारा विश्‍वास करने को तैयार हूँ।”


 “फिर ठीक है”, ऑफिसर ने कुछ सन्‍तुष्‍टि के साथ कहा और कागज लिए सीढि़यों पर चढ़ने लगा और ऊपर पहुँच उसने कागज को डिजाइनर में रख दिया और व्‍हील के नटों को घुमाने लगा।

 यह खासा परेशानी भरा काम था, शायद छोटे-छोटे व्‍हील उसमें एक-दूसरे से जुड़े होंगे, डिजाइनर के बीच में उसका सिर कभी-कभार पूरी तरह छिप जाता था, इतना तकनीकी काम था वह।
उधर नीचे खड़ा अन्‍वेषक इस तकनीकी श्रम को एकटक देखे जा रहा था, लगातार गर्दन ऊपर करे रहने से अकड़ रही थी और ऊपर आकाश से आती तेज रोशनी से आँखें चौंधियाँ रही थीं। 

उधर सैनिक और सजायाफ्‍ता भी जुटे हुए थे। उस आदमी की शर्ट और पेन्‍ट जो कब्र में डाल दिए गए थे, उन्‍हें सैनिक ने बैनेट से फँसाकर निकाल लिया था। शर्ट बेहद गन्‍दी हो गई थी अतः उसके मालिक ने उसे बाल्‍टी के पानी से धो लिया। 

जब उसने शर्ट और ट्राउजर पहन लिया तो वह और सैनिक ठहाका लगाकर हँसने लगे क्‍योंकि कपड़े पीठ की ओर पूरी तरह से फट चुके थे। 

शायद सजायाफ्‍ता को लगा कि उसे सैनिक को हँसाना चाहिए इसलिए वह चीथड़े हुए कपड़ों में गोले-गोल घूमने लगा, जो जमीन पर बैठा जोर-जोर से हँसते हुए घुटनों पर हाथ मार रहा था। लेकिन साथ में खड़े सम्‍मानीय व्‍यक्‍ति के विषय में सोच उन्‍होंने हँसी को किसी तरह जल्‍दी रोक लिया।

जब ऑफिसर ने ऊपर के सभी काम व्‍यवस्‍थित ढंग से कर लिए तब मुस्‍करा कर मशीन को एक बार पूरी तरह से चैक किया ओर डिजाइनर के ढक्‍कन को बन्‍द कर दिया, जो अभी तक लगातार खुला रहा आया था,

 इसके बाद आराम से उतर पहले खुदी हुई कब्र को और फिर सजायाफ्‍ता के फटे कपड़ों की ओर सन्‍तुष्‍टि के साथ देख बाल्‍टी में हाथ डाल दिए धोने के लिए, लेकिन जब उसने पानी के गन्‍दलेपन को देखा तो वह निराशा से भर गया क्‍योंकि हाथ धोना उसके वश में नहीं था, 

अन्‍त में जब कुछ समझ में नहीं आया तो दोनों हाथ रेत के अन्‍दर डाल दिए- लेकिन उसे इससे सन्‍तुष्‍टि तो नहीं हुई, लेकिन मजबूरी में उसने इतने से ही तसल्‍ली कर ली और सीधे तन कर खड़े हो अपने यूनीफार्म की जैकेट के बटन खोल दिए। 

जब वह यह कर रहा था तभी दो लेडीज़ रुमाल जिन्‍हें उसने कालर में खोंस रखा था, उसके हाथों पर गिर गए। “ये रहे तुम्‍हारे रुमाल”, कहते उसने उन्‍हें सजायाफ्‍ता की ओर फेंक अन्‍वेषक की ओर देख कहा, “महिलाओं की भेंट।”

हालाँकि वह तेजी से यूनीफार्म, जैकेट और सभी कपड़े एक-एक कर उतार रहा था, लेकिन साथ ही प्रत्‍येक वस्‍त्र को प्‍यार से सहलाता भी जा रहा था, यहाँ तक कि उसने जैकेट पर लगी चाँदी की लेस पर प्‍यार से ऊँगली फेरी और एक मुड़े भाग को सीधा भी किया। लेकिन जितने प्‍यार से वह यह कर रहा था उसके बाद जितनी बेदर्दी से उन्‍हें कब्र के गड्‌ढे में फेंक भी रहा था- वह उसकी पहली हरकत से मेल नहीं खाता था।

 अन्‍त में उसकी देह पर बची रही थी तलवार की बेल्‍ट और उसमें रखी तलवार। उसने तलवार म्‍यान से बाहर निकाली, उसे तोड़ा और सभी टुकड़े, म्‍यान और बेल्‍ट इतनी जोर से कब्र में फेंके कि वे देर तक झनझनाते रहे।

और अब वह मादरजाद नंगा खड़ा था। अन्‍वेषक ने अपने ओंठ काटे लेकिन कहा कुछ भी नहीं। वह अच्‍छी तरह समझ रहा था कि क्‍या होने वाला है। उसे ऑफिसर को रोकने का कोई अधिकार नहीं है। यदि दण्‍ड-व्‍यवस्‍था, जिससे ऑफिसर इतने निकट से जुड़ा रहा है और जिससे वह प्‍यार करता रहा है, 

यदि उसका अन्‍त होना है- और सम्‍भवतः अन्‍वेषक के विरोध के परिणामस्‍वरूप- और जिस विधि के लिए ऑफिसर वचनब( और समर्पित रहा है, तो ऑफिसर का उठाया जाने वाला कदम पूर्णतः उचित है, यदि वह स्‍वयं उसकी जगह होता तो उसने भी यही किया होता।

उधर शुरुआत में तो सैनिक और सजायाफ्‍ता के सामने जो कुछ हो रहा था, उससे उनके पल्‍ले कुछ पड़ा ही नहीं, सच तो यह है कि उनका ध्‍यान इस तरफ था ही नहीं। सजायाफ्‍ता उन रुमालों को पाकर प्रसन्‍न हो रहा था, लेकिन यह खुशी उसके साथ अधिक देर तक नहीं रह पाई, क्‍योंकि सैनिक ने एकाएक उन्‍हें उसके हाथ से छीन लिया था, 

इसलिए सजायाफ्‍ता उन्‍हें उसके बेल्‍ट के नीचे से खींचने के चक्‍कर में था, जहाँ सैनिक ने उन्‍हें फँसा लिया था, लेकिन सैनिक बेखबर न था। अतः दोनों ही छीना-झपटी के इस खेल में मस्‍त थे। और जब ऑफिसर उनके सामने कपड़े उतार पूरी तरह नंगा हो गया तब जाकर उनका ध्‍यान उसकी ओर गया। 

विशेषकर सजायाफ्‍ता अपने भाग्‍य के इस परिवर्तन को देख हक्‍का-बक्‍का-सा मुँह फाड़े देखने लगा। जो कुछ उसके साथ हुआ था अब वही सब ऑफिसर के साथ होने वाला था। शायद उसकी अन्‍तिम परिणित तक। उसके विचार से यह आदेश विदेशी अन्‍वेषक ने ही दिया होगा। तो यह प्रतिशोध था।

 हालाँकि उसने अंत तक पीड़ा नहीं भोगी थी लेकिन उसका प्रतिशोध तो अन्‍त तक लिया जाएगा। एक चौड़ी मौन मुस्‍कराहट उसके ओठों पर फैल गई जो अन्‍त तक वैसी ही रही आई।

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